Saturday, September 20, 2014

सबके ..'मामा'

                             
                   आज की यात्रा के नायक,खलनायक 'पाण्डेय' जी रहे। वैसे तो पाण्डेय जी कभी कमाल नही करते  पर आज उन्होंने बताया की मिठाई की डिमांड पूरी करने के फेर में लोकल ट्रेन से कूदकर नीचे उतर गए। राहु-केतु के दोष से मुक्त नए बैग में मिठाई का डिब्बा लिए जब लिंक में फिर चढ़े तो मुझे कहना पड़ा 'कमाल करते है पाण्डेय जी।' शिक्षक है पाण्डेय जी। उनके कद्रदान 'मामा जी' कह कर पुकारते है। पाण्डेय जी को मामा जी कहकर सम्बोधित करने वालों की फेहरिस्त जितनी लम्बी-चौड़ी है उसमे उतने ही उम्र-दराज नाम शामिल है। रिटायरमेंट की दहलीज पर खड़ा इंसान हो या फिर जिंदगी से रिटायर होने वाले साहेबान,पाण्डेय जी सबके 'मामा' है। अच्छा रिश्ता है। महोदय ध्रर्म-कर्म के जानकार है। सरलता और सहजता से परिपूर्ण है मगर किसी बात पर शुरू हुए तो छटी का दूध याद दिलाने की ठान लेते है। फिर चाहे संस्कृत में गाना ही क्यों ना सुनाना पड़े। जगत मामा की कोशिश होती है उनसे कोई नाराज़ ना हो चूँकि कड़वा और मुँह पर बोलने की बीमारी से पीड़ित है इस कारण साथियों के नाराज़ होने का भ्रम बना रहता है।
        पाण्डेय जी यानी जगत मामा के संक्षिप्त परिचय के बाद मूल विषय पर लौट आता हूँ। पिछले दिनों महाशय ने पारिवारिक ख़ुशी का जिक्र साथियों के बीच क्या किया मानो पाण्डेय जी के पीछे सब नहा-धोकर,पोंछ-पांछ कर पड़ गए। हकीकत तो मामा ही जाने मगर कभी उपवास तो कभी कुछ कारण से मिठाई नही खिलाई जा रही थी। आज बहाने की गुंजाइश शायद नही बन पाई। कई दिनों की डिमांड आज मामा जी ने पूरी की तो कइयों का मुफ्त ही मुँह मीठा होता चला गया। जिनको मिठाई खिलाये जाने की वजह पता नही थी उन्होंने कोशिश भी नही की जानने की आखिर बेवक्त मामा इतने खुश क्यों है ? 
         मीठा खाने वाले सभी साथियों की ओर से श्रद्धेय ' मामी जी ' को पुनः जन्म दिन की शुभकामनाएं।    

No comments:

Post a Comment