पहले मान्यवर मोदी को भाजपा से ऊपर बैठाया और आज मोदी-चीनी भाई-भाई कहकर मीडिया ने प्रधानमंत्री मोदी को देश से भी ऊपर मान लिया। कई मामलों में बेहद साफ़-सुथरे मन और मिजाज के नरेंद्र भाई मोदी से उम्मीद लगाना बेहतर मनःस्थिति तो है लेकिन लोकतंत्र और देश से ऊपर आज तक न कोई राजा मान्य हुआ है और न ही कोई व्यवस्था स्वीकार्य हुई है। लोकतान्त्रिक आस्थाओं के दुर्ग के बाहर खड़े होकर मीडिया जिस तरह की चारण-वृत्ति कर रही है, यह उसके पतन की इच्छा-शक्ति कह लें तो न गुनाह है और न ही किसी तरह की अतिश्योक्ति।

मुझे [मिडिया] अभी कई सालों तक अपमानित होना है। बुरे दौर की कालिख तो मेरे [मीडिया कर्मी] ही चेहरे पर मली जायेगी। उन घरानों का कौन नाम लेता है जिनके हाथों की मैं [मिडिया] कठपुतली हूँ ? उनसे तो कोई सवाल नही पूछता कितने में बिके हो भाई खम्भानी,धम्भानी... ? अरे मैं [मिडिया] जिनके इशारे पर बाजार में बन्दर के माफिक नाच रहा हूँ,जिनके एक इशारे पर मेरे [मिडिया] आत्म स्वाभिमान की बलि चढ़ जाती है,जिनकी चाकरी में मेरे [मिडिया] वस्त्र उतार दिए जाते है ऐसे दौर में भी मैं [मिडिया] कइयों का पेट भर रहा हूँ। सोचता हूँ आज नही तो कल हालात बदलेंगें मगर इस हालात के लिए जिम्मेदार भी तो मेरे ही साथी है। कुछ कल तक कलमकार थे अब मालिक के लबादे में कलमकारी भूलकर मेरे जैसे जरुरत मंदों को रोजगार दे देते है। मैंने काफी देर तक उस बाबू बंगाली और मारवाड़ी महाशय को सूना। भले-बुरे के बीच कई कड़वी हकीकत जो मालिकान के कानों तक नही पहुंचती वो सब सुनने के बाद मैंने केवल एक ही सवाल किया... भईया अगर आप किसी समाचार चैनल के मालिक होते तो क्या ये सब नही दिखाते ? जवाब नही था भाई बकबक दास के पास। मैंने कहा सर बाज़ार की डिमांड पर खबरे परोसते है हम। देखना ना देखना आपकी मर्ज़ी। क्यूंकि कोठे पर जाने वाला हर शख्स मुजरे का शौक़ीन हो जरूरी नही।
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