Thursday, September 18, 2014

मैं ...मतलब बिका हुआ !

                                               
                                           पहले मान्यवर मोदी को भाजपा से ऊपर बैठाया और आज मोदी-चीनी भाई-भाई कहकर मीडिया ने प्रधानमंत्री मोदी को देश से भी ऊपर मान लिया। कई मामलों में बेहद साफ़-सुथरे मन और मिजाज के नरेंद्र भाई मोदी से उम्मीद लगाना बेहतर मनःस्थिति तो है लेकिन लोकतंत्र और देश से ऊपर आज तक न कोई राजा मान्य हुआ है और न ही कोई व्यवस्था स्वीकार्य हुई है। लोकतान्त्रिक आस्थाओं के दुर्ग के बाहर खड़े होकर मीडिया जिस तरह की चारण-वृत्ति कर रही है, यह उसके पतन की इच्छा-शक्ति कह लें तो न गुनाह है और न ही किसी तरह की अतिश्योक्ति।
                   आज हालात और कड़वी हकीकत ये है की कोई भी सीना ठोककर कह देता है 'मीडिया' बिक गया है। कुछ गलत है ? नही.. वो भी जान चुका है कब आसाराम के कपडे उतारे जाएंगे कब बाबा रामदेव के काले धन का मसला मसाला बनेगा। अभी मोदी जी पर चैनल की टीआरपी घट-बढ़ रही है। जो भी कर रहें है नया कर रहें है,इतिहास बन रहा है। नए इतिहास में सिर्फ मोदी जी ही होंगे। भाई आज सत्ता में कौन है ? मुझे [मिडिया] तो जो ज्यादा में मैनेज करेगा उसी का इतिहास बनाऊंगा। कल तुम कुर्सी पर होगे तो इनके इतिहास की जांच का शोर मचा दूंगा। मैं [मिडिया] बोल रहा हूँ। मैं मतलब ...बिका हुआ। आज सफर के दौरान भी कुछ इसी तरह की चर्चा मेरे कान सेंक रही थी। मीडिया के फैलते कारोबार और बिक्री को लेकर ही दो भले टाइप के मानुस आपस में राग अलाप रहे थे। एक सज्जन बोले अरे मीडिया बिका है फिर भी मंत्री-संत्री से ज्यादा पावरफुल है। दूसरे भाई साहब कुछ अपशब्दों के साथ मेरा [मिडिया]  हौसला आफजाई कर रहे थे। दोनों महापुरुषों की वाणी मुझे इस वक्त किसी तीर से कम नही चुभ रही थी मगर मैं [मिडिया] मैं हूँ नही बता पा रहा था। मैं मौके पर चौका मारने की फिराक में काफी देर तक किसी निरक्षर व्यक्ति की भांति कुछ देर उसका तो कुछ देर उसका। मतलब दोनों का मुँह ताक रहा था। बातचीत के सिलसिले में मालूम हुआ एक बंगाली बाबू है दूसरे मारवाड़ी। बात-बात में ये भी पता चल गया मारवाड़ी सज्जन रायपुर के रहने वाले है। उनका पता स्थाई/अस्थाई जो भी हो मगर पानी पी-पीकर मीडिया की बखिया उधेड़ते रहे। मारवाड़ी भाई को मलाल है शौचालय से लेकर शयन कक्ष तक एक गुजराती की महिमा मंडित आरती का शोर टीवी पर सुनाई देता है। आखिर नमो बाबा की आरती मीडिया दर्शन पर कब ख़त्म होगी ? मारवाड़ी भाई की परेशानी लाजिमी है मगर लक्ष्य २०२४ तक का है।  
    मुझे [मिडिया] अभी कई सालों तक अपमानित होना है। बुरे दौर की कालिख तो मेरे [मीडिया कर्मी] ही चेहरे पर मली जायेगी। उन घरानों का कौन नाम लेता है जिनके हाथों की मैं [मिडिया] कठपुतली हूँ ? उनसे तो कोई सवाल नही पूछता कितने में बिके हो भाई खम्भानी,धम्भानी... ? अरे मैं [मिडिया] जिनके इशारे पर बाजार में बन्दर के माफिक नाच रहा हूँ,जिनके एक इशारे पर मेरे [मिडिया] आत्म स्वाभिमान की बलि चढ़ जाती है,जिनकी चाकरी में मेरे [मिडिया] वस्त्र उतार दिए जाते है ऐसे दौर में भी मैं [मिडिया] कइयों का पेट भर रहा हूँ। सोचता हूँ आज नही तो कल हालात बदलेंगें मगर इस हालात के लिए जिम्मेदार भी तो मेरे ही साथी है। कुछ कल तक कलमकार थे अब मालिक के लबादे में कलमकारी भूलकर मेरे जैसे जरुरत मंदों को रोजगार दे देते है।  मैंने काफी देर तक उस बाबू बंगाली और मारवाड़ी महाशय को सूना। भले-बुरे के बीच कई कड़वी हकीकत जो मालिकान के कानों तक नही पहुंचती वो सब सुनने के बाद मैंने केवल एक ही सवाल किया... भईया अगर आप किसी समाचार चैनल के मालिक होते तो क्या ये सब नही दिखाते ? जवाब नही था भाई बकबक दास के पास। मैंने कहा सर बाज़ार की डिमांड पर खबरे परोसते है हम। देखना ना देखना आपकी मर्ज़ी। क्यूंकि कोठे पर जाने वाला हर शख्स मुजरे का शौक़ीन हो जरूरी नही।    

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