Friday, April 11, 2014

...और वो रुखसत हो गई।

                                               
                         कहते है मौत का वक्त और जगह जन्म से ही मुक़र्रर होता है। मौत की वजह तो सिर्फ लोगों के लिए चर्चा का विषय हो जाती है। आज का दिन उस अनजान मासूम के लिए तय था। मौत की तारीख पहले ही लिखी जा चुकी थी बस इन्तेजार था काल के आने का। वो नही जानती थी की काल उन्ही पटरियों पर शोर करता हुआ उसे निगलने के लिए बेलगाम रफ़्तार से भाग आ रहा है। वो तो खामोशी से बिना किसी अनहोनी की आशंका के पटरियों के बीच गिरे हुए कोयले को बीन रही थी। इसी बीच पटरियों के रास्ते लिंक एक्सप्रेस की शक्ल में मौत आई और उस मासूम को रौन्दते हुए आगे जाकर एक झटके से रुक गई। सैकड़ों यात्रियों को अचानक एक झटके से ट्रैन के रुक जाने की वजह नही समझ आई। कुछ ही पल में करीब करीब हर मुसाफिर को मालूम चल गया की जिस एक्सप्रेस ट्रैन से वो यात्रा कर रहें है उससे एक मासूम कटकर इस जहां से हमेशा के लिए रुखसत हो गई है।
                   
दरअसल ये दर्दनाक वाकया आज का है। सुबह ९ बजकर ५ मिनट पर अपने निर्धारित समय पर लिंक एक्सप्रेस बिलासपुर रेलवे स्टेशन से कोरबा के लिए रवाना हुई। करीब ९ बजकर २७ मिनट हुए थे की अचानक तेज रफ़्तार भागती लिंक एक्सप्रेस  कोटमी सुनार रेलवे स्टेशन के  पहले  रुक गई। एक एक कर यात्रियों की भीड़ नीचे पटरी पर नजर आई,किसी अनहोनी का आभास होने पर मैं भी ट्रैन से नीचे उतर गया। फिर जो देखा उस को बयाँ करने के लिए शब्द नही है। बस यहां-वहां पड़े मांस के लोथड़े और खून से सने कपडे के चीथड़े मरने वाले की उम्र का अंदाज लगाने के लिए काफी थे। सैकड़ों यात्रियों की भीड़ के बीच मैं भी तमाशबीन की तरह दर्दनाक वाकये को महसूस करता खड़ा रहा। जितने लोग उतनी बातें। मौके पर मौजूद कुछ ग्रामीणों ने बताया की वो लड़की को कुछ देर पहले तक इन्ही पटरियों के बीच कोयला बीनते देख रहे थे फिर अचानक से एक शोर और सब कुछ ख़त्म। किसी को नही मालूम वो कौन थी,किधर रहती थी। इधर कुछ ही पल में ट्रेन कोरबा के लिए रवाना हो गई। सैकड़ों तमाशाइयों में मैं भी एक था। ट्रैन के चलते ही मैं भी फिर सवार हो गया। इस दौरान  मेरे मन में कई सवाल उठते रहे,कई ख़याल ऐसे की सोचकर रोंगटे खड़े हो जाते है। इस तरह के हादसे रोज होते है,ना जाने कितनी ही जिंदगी हर दिन खामोश पटरियों पर एक चीख के साथ हमेशा के लिए ख़त्म हो जाती है। बस नही ख़त्म होता तो जिंदगी का सफर.....कभी इसका तो कभी उसका तो कभी किसी और का सफर अनवरत चलता रहता है। इस बीच  कुछ बदलता है  तो बस भीड़ का चेहरा।  

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