Friday, March 18, 2016

"श्याम" रंग का रंगा

                                      रंगा, ईमानदार हो गया है । झूठ फरेब से उसका कोई वास्ता नही । पुराने पापों का प्रायश्चित करना चाहता है, मगर ऊपर वाले की मार से मारा मार फिर रहा हैं । क्या करे बेचारा खुद ही मियां मु मिट्ठू बना फिर रहा है । "श्याम" रंग का रंगा अस्त हो चुका है, मगर ख्वाब "उदय" होने के देखता है । रंगा "कोरी" किताब में कभी रंग नही भर सका, बेचारा किस्मत की मार और लोगों की बद्दुआ से अब ख़ासा लाचार नज़र आता है । बोलता कम खांसता ज्यादा है । अपने पैरों पर चलना करीब-करीब भूल चूका है इसलिए बिल्ला की पीठ पर चढ़कर बेताल की तरह आस-पास घूम लेता है । एम्बुस लगाने का बड़ा शौक है, लगाने का मौका विभाग ने दिया तो डरकर नौकरी से भाग खड़ा हुआ ।
                लाचार और कमजोर रंगा ईमानदार हो गया है, ये आज ही किसी ने बताया । बताने वाले ने मुझसे पूछा ऐसा कैसे हो गया ? मैंने कहा रंगा ज्ञानी है, वो वक्त की नज़ाकत को देखकर ईमानदार बनने का ड्रामा कर रहा है । गूगल महराज के खजाने से कोई और ज्ञान ले ले रंगा- बिल्ला बेचैन हो जाते हैं । उनको लगता है ज्ञान का खजाना माँ की कोख से लेकर आये हैं । भूल जाते हैं बाज़ार सबके लिए है, फिर रंगा बिल्ला तो बाज़ार की पुरानी ककड़ी हैं । 
रंगा चोरी चमारी की बात आजकल खूब करता है, करे भी क्यूँ न पोलिस वाला जो ठहरा । पुलिस की नौकरी में सेवा कम 'लाईन' ज्यादा मिली । जब-जब कुछ करना चाहा बदनियती ने मुँह भरसा गिरा दिया । चोर उचक्कों, जिस्म और जमीन के दलालों का साथी रंगा अब एकदम नंगा है । महकमें में सेवाकाल के दौरान मान सम्मान का मोहताज़ रहा रंगा किस्से कहानियाँ सूना सुनाकर अब शारीरिक पीड़ा से ध्यान भटका रहा है । मान सम्मान की चाह में रंगा नमक हरामी करने से पीछे नहीं रहता । जिस दरवाजे से लात मारकर अक्सर हकाल दिया जाता है फिर उसी चौखट पर पूंछ हिलाता खड़ा नज़र आता है । मजबूर है, सब जानते हैं । अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता । फिर मुफ्तखोरी के लिए बेशर्म बनाना ही पड़ता है । 
                 जब मैंने सूना रंगा हरिश्चंद्र का रिश्तेदार है तो सहम गया । बड़ी बड़ी बातें, ईमानदारी की डफली ठोकता रंगा कितना कायर और डरपोक है ये लोग जानते हैं । सेवा रिकार्ड में रंगा की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के किस्से अंकित होंगे । गांव की चौपाल से लेकर शहर की चौपाटी तक होनहार,कर्तव्यनिष्ठ और जांबाज़ पुलिस कर्मी रंगा के किस्से आम हैं । रंगा को कर्तव्यनिष्ठा का ईमानदारी से पालन करने का फरमान सुनाकर जब बस्तर भेजा गया तो बेचारा झूठमूठ का बीमार पड़ गया । खुद के मुह से निकला झूठ आज सच हो गया । भगवान् करें रंगा स्वस्थ्य रहे, खुश रहे ये कामना तो मैं नहीं कर सकता क्योंकि वो हो नहीं सकता । दूसरे को कैसे मान-सम्मान मिला ये सोचकर रात की नींद खराब कर लेने वाला रंगा कायर हैं, भगोडा हैं । डरकर सेवा की जिम्मेवारियों से भागे, अब घिसटकर तस्वीरें समेट रहें हैं । काफी दूर और लो लाईट में ली गई धुंधली तस्वीरें रंगा बाबा की पहचान हैं । खाली दिमाग शैतान का, पूरा वक्त लो लाईट में फुल टाईम देने का ।
               रंगा बहुत मेहनती है, नज़र भी तेज है । ये नज़र भले ही चोर उचक्कों को पकड़ने में काम ना आई हो मगर चिड़िया फट से पकड़ आ जाती है । विभागीय सेवा में कामचोरी से मान नहीं मिला तो मेहनत करके बर्ड्स खोज रहा रंगा जितना 'श्याम' है उतना ही चुप्पा शातिर । कोशिश करता है दिमाग से मात देने की, अफ़सोस खुद हार जाता हैं । 
...... क़िस्सा-ए-रंगा बिल्ला की अगली क़िस्त कुछ और रोचक होगी । इसमे कुछ बाजारू किरदारों की महती भूमिका का उल्लेख होगा जो हरिश्चंद्र बने बेईमानो की कारगुजारियों का सिलसिलेवार खुलासा करेंगी । किरदारों की भूमिका का सजीव चित्रण होगा, सिर्फ उनके नाम बदले होंगे ।
......................॥.................क्रमशः............।।.......................

2 comments:

  1. ब्लागिंग के पुराने दिनों के झगड़े याद आ गए।

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  2. ब्लागिंग के पुराने दिनों के झगड़े याद आ गए।

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